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क्या दलित विरोधी है सरकार ?

जिद्दी जीतू सोसल एक्टीविस्ट
जिद्दी जीतू सोसल एक्टीविस्ट
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क्या दलित विरोधी है सरकार ?

भारत में दिनों दिन दलितों पर बढ़ते अत्याचार की घटनाओं ने आज भारत के प्रबुद्ध शोषित समाज के मन में बड़ा सवाल पैदा कर दिया है, क्या दलित विरोधी है सरकार ? या आज भी दलितों को समाज में उचित स्थान नही मिल पाया है?

अगर हम हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो उनमे से प्रमुख घटनाएँ जिन्होंने प्रबुद्ध वर्ग को झकझोरा है, कुछ उदाहरण के तौर पर इस प्रकार हैं :- अक्टूबर २०१५ की बात है जब एक ९० साल की बुजुर्ग दलित महिला को बुरी तरह पीटने के बाद जिन्दा जला दिया गया था जबकि उसका कुसूर सिर्फ इतना था की दलित वर्ग से होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में बने एक मंदिर में घुस गयी थी जहाँ उसे पिंड दान करना थाI

दूसरी घटना पर नजर डालें तो अक्टूबर २०१५ की ही बात है, फरीदाबाद के पलवल में दलित परिवार के साथ हुई घटना ने पुरे भारत को हिला दिया था, वहां एक दलित परिवार क घर में पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी गयी थी जिसमे उस परिवार के दो मासूमों की जल कर दर्दनाक मौत हो गयी थी, और मुखिया भी बुरी तरह घायल हो गया था!
एक और घटना पर नजर डालें, बात नवंबवर २०१५ की ही है उत्तर प्रदेश के इलाहबाद जिले की है जहा एक महिला के साथ मंदिर में मारपीट की गयी थी और उसकी सोने की चैन भी लूट ली गयी थी उस महिला का दोष सिर्फ इतना था की वह दलित वर्ग से थी और उसने पूजा के बहाने मंदिर में स्थित देवी की मूर्ति को छू लिया थाI ये कुछ ऐसी घटनाएँ थीं जो साधारण व्यक्तियों के साथ घटित हुई थीं, और ऐसी घटनाये आये दिन होती रहती हैं शोषित समाज शुक्र गुजार है उस मीडिया का जो इन खबरों को जगह देते हैं, बात सिर्फ साधारण व्यक्तियों तक सीमित होती तो कुछ लोगो के लिए मामूली हो सकती होगी!

अभी हाल के दिनों में कुछ ऐसे मामले भी सामने आएं हैं जिन्हे मीडिया ने भी प्रमुखता से जगह दी है ये मामले उन लोगो के खिलाफ हुए हैं जो भारत के उच्च और सम्माननीय पदों पर आसीन हैं, हम बात करे राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव उमराव सालोदिया, १९७८ बैच के आईएएस अधिकारी जिन्होंने ने सरकार पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगाकर सार्वजानिक रूप से धर्म परिवर्तन किया, और स्वेच्छा से सेवानिवृति का आवेदन भी सरकार को देदियाI इसी क्रम में उदयपुर राजस्थान का ही दूसरा मामला भाजपा के जिला प्रमुख शांतिलाल मेघवाल का है जिन्होंने कलेक्ट्रेट पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाकर केंद्रीय अनुसूचित जाती आयोग में शिकायत दर्ज करायी हैI

अभी ये मामले ठन्डे भी नही हुए थे की नया मामला मध्यप्रदेश सरकार के सीनियर आईएएस अधिकारी रमेश थेटे साहब का प्रकाश में आया है, विभिन्न जातिगत, सामाजिक प्रताड़ना सहते सहते आखिर उनका दुःख का दरिया आँखों से वह ही निकला, अफसर, दलित आदिवासी फोरम को अपना दुःख सुनाने के दौरान अपने आंशुओं को बहने से रोक न सके और फूट फूट कर रोने लगे, थेटे ने कहा “सरकार उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रही है जिसके कारण ही उनके बच्चो के चहरे की ख़ुशी और पत्नी का सौंदर्य ख़त्म हो गया है, उन्हें सिर्फ इस लिए प्रताड़ित किया जा रहा है, क्योंकि वह दलित हैं I”

उपरोक्त चुनिंदा परन्तु बेहद दुखदायी उदाहरणों को देखते हुए आज डा० अम्बेडकर जी की कही गयी कुछ बाते याद आ जाती हैं उन्होंने कहा था “जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आप को जो भी स्वतंत्रता देता है वह आपके किसी काम की नहीं” उन्होंने कहा था “हमारे पास यह स्वतंत्रता किस लिए है? हमारे पास ये स्वतंत्रता इसलिए है ताकि हम अपने सामाजिक व्यवस्था, जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी है, जो हमारे मौलिक अधिकारों से टकराव में है, को सुधर सकेंI”

भारत के शोषित प्रबुद्ध समाज में अब ये सवाल उठ रहे हैं जिनका जवाव मैं पाठकों पर छोड़ता हूँ, सवाल हैं : क्या भारत की सरकार सच में दलित विरोधी तो नहीं जो दलितों पर हो रहे तमाम अत्याचारों पर मौन धारण किये हुए हैं? क्या भारत की सरकार अनुसूचितजाति, जनजाति के प्रति असंवेदनशील तो नही? क्या भारत की सरकार डा० अम्बेडकर का नाम सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए लेती है, या उनके मकसद “दलितों और शोषितों का अधिकार और सामाजिक स्वतंत्रता” की भी चिंता है?

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