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“हिन्दू धर्म में विवेक, कारन और स्वतंत्र सोच के विकाश के लिए कोई गुंजाईश नही है”
…Dr. B R Ambedkar
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के एक सर्वे के अनुसार भारत में OBC जनसंख्या 40.94%, अनुसूचित जाति की आबादी 19.59% तथा अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 8.63% है! सर्वे के अनुसार , अनुसूचित जनजाति की 91.4% जनसंख्या, अनुसूचित जाति की 79.8% आबादी और 78.0% OBC आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही है! भारत के गॉव में अबी कितना विकास हुआ है ये कोई भी आसानी से देख सकता है अर्थात इन लोगो की आर्थिक स्थिति कैसी होगी बताने की आवश्यकता नही है!
इन आंकड़ों पे धार्मिक राजनीती करने वाला कोई भी आसानी से ये अनुमान लगा सकता है की आप भारत में लोगों को धरम और जाती के आधार पर बाँट कर राजनीति की जाये तो भारत पर शासन करना कितना आसान है, और ऐसी बहुत सी राजनीकित पार्टियां हैं जो ये काम आसानी से कर रहीं हैं! भारत में हो रहे धार्मिक दंगे सिर्फ राजनीतिक खेल हैं ऐसा मेरा मानना है, अन्यथा ऐसा कोई दंगा नही जिसे शासन रोक न सके! इन सबके पीछे राजनीतिक लाभ छुपा होता है!
अभी हाल ही में हुए बिहार विधान आभा चुनाव में मोदी जी ने दलितों को लुभाने का भरकश प्रयास किया था, जोर शोर से हो हल्ला किया था की अगर अनुसूचित जाती, जनजाति के आरक्षण पर कोई उंगली उठाएगा तो जान की वाजी लगा देंगे और आरक्षण खत्म नही होने देंगे जबकि प्रमोशन में आरक्षण खतरे में है जिसे अगर मोदी सरकार चाहे तो बचा सकती है ये बात हुई चुनावी जुमलों की।
मोदी सरकार ने इस बार बाबा साहिब डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर के १२५वे जन्म दिवस यानि 14 अप्रैल 2016 को बड़े जोरों से मानाने का प्लान बनाया है, और हो भी क्यों न आखिर भारत में अम्बेडकरवादियों की संख्या भी खूब है ही, और मोदी सरकार जानती है की अगर अम्बेडकरवादियों को जोड़ पाएं तो राजनीतिक सत्ता आसान हो जाएगी! इसी क्रम में मोदी सरकार ने दलितों की राजनीती नमक पाठ के अंतर्गत “अम्बेडकर प्रेम” नमक नाटक रच डाला, पर इस नाटक पर मंचन इतना आसान नही था जितना मोदी सरकार ने सोचा था, क्योंकि मोदी सरकार की नीव उस धार्मिक एजेंडे पर टिकी है जिस धर्म में व्याप्त विसंगतियों, वुरायियों , अवतारवाद , जातिवाद, साम्राज्यवाद अंधविस्वास आदि का घोर विरोध किया था बाबा साहब अम्बेडकर जी ने और तो और उन्होंने सार्वजानिक तौर पर अपने लाखों अनुयायियों के साथ इसे त्याग भी दिया था इस धर्म के बारे में उन्होंने कहा था की “हिन्दू धर्म में विवेक, कारन और स्वतंत्र सोच के विकाश के लिए कोई गुंजाईश नही है” इस धर्म की वुराईयों से परेशान होकर बाबा साहिब ने कहा था की “मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ यह मेरे वष की बात नही थी, लेकिन हिन्दू रहकर मारूंगा नही” और उन्होंने 14 अक्टूबर सन 1956 को बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। हुआ कुछ यूँ अभी मोदी सरकार के अम्बेडकर प्रेम नमक नाटक के मंचन की तयारी चल रही है जिसमे मोदी सरकार ने डॉक्टर अम्बेडकर जी की ४ लाख किताबें छपवायी! इस किताब का नाम था “राष्ट्रीय महापुरुष भारत रत्न डॉक्टर अम्बेडकर” किताबें छपी थीं अहमदावाद के सूर्य प्रकाशन ने, और किताब के लेखक हैं महान दलित विद्वान पी ऐ परमार, किताब लिखाई गयी गुजराती भाषा में! पर करंट तब लगा जब पता चला की किताब में हिन्दू धर्म की कमर तोड़ने वाली वह 22 प्रतिज्ञाएँ भी छपी हैं जो डॉक्टर अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर सन 1956 को हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाते समय अपने अनुयायियों के साथ ली थीं यह देख कर लोगो के हाथ पांव फूल गए और आनन फानन में सारी किताबें माँगा ली गयीं!
फिर क्या था मोदी सरकार द्वारा रचित अम्बेडकरवादी प्रेम नमक नाटक, मंचन के पहले ही फ्लॉप होता नजर आया, और इस तरह दलितों के बीच झूठे दलित प्रेम की पोल खुल गयी!
ऐसी सख्शियत जिसने उसी धर्म की वुरायियों पर इतनी गहरी छोट की हो जिस धर्म का एजेंडा लेकर कोई सरकार राजनीति में सत्ता पर हो भला कैसे उन इंसान का प्रचार करना इतना आसान है क्या? 56 इंच का सीना चाहिए उसके लिए!
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